संदेश

अप्रैल, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ब्रह्मकमल

चित्र
गीली माटी पर बने पदचिन्ह सूख जाते हैं, मगर हिमालय की चट्टानी सतह पर नए अंकुरों का स्वागत करती है प्रकृति नभ का विस्तार सदा वैसा ही, पर धरती का श्रृंगार सदा बदला करती है प्रकृति पावस के आते ही पर्वतों के दुर्गम स्थानों मेंे सौंदर्य का नया उल्लास फटते देखा है। जून माह तक हिम आच्छादित क्षेत्र बर्फ से ढके रहते हैं। सूर्य की तपन भी बर्फ को आंशिक ही पिघला पाती है।.................लेकिन स्नेह की पतली धार की तरह मानसून की पहली झड़ी ही शेष बर्फ को पिघलाने में सहायक होती हैं। अंकुरण के इंतजार में जमीन में दबे पड़े बीज उगने लगते हैं। ये बड़ी तेजी से अपना विस्तार करते हैं.............. इतना विस्तार की वंशवृद्धि के लिए फल-फूल धारण करते हैं। बारहों महीने हिमराशी की धवलता के सौंदर्य से सजे हिमालय की गोद में 10 से 15 हजार फीट ऊंचाई तक फैले इस नैसर्गिक सौंदर्य में हरियाली की मखमली चादर बिछ जाती है। गढ़वाल हिमालय का प्राकृतिक सौंदर्य, सुरम्य दृश्यों के साथ-साथ आलौकिक दृश्यों को चार चांद लगाता हैै। हिमालय का सबसे वेज गंध वाला पुष्प ना केवल यहां उगता है बल्कि बढ़ता है, महकता भी है................. वही तो है
चित्र
कहानी एक ताजा खबर डॉ.स्वाति तिवारी ''हम बाजार में खड़े हैं, बाजार के लिए ही काम करते हैं, हमारे घर का चूल्हा हमारी स्टोरी के बिकने पर जलता है। क्या करें... भाभी जिस समाज का समूचा ढांचा ही दोहरे मानदण्डों पर टिका है वहां अपने आदर्श नहीं चलते..... आदेश रखने पड़ते हैं ताक में.... अखबार का मालिक निकाल फेंकता है आदर्शवादी पत्रकारों को.... अब आप तो सब जानती हैं .... इसी माहौल से रोज दो चार होती हैं... भैया का देखती तो है रोज संघर्ष करते हुए... वो तो इनकी सरकारी नौकरी है वरना दाल रोटी इतनी आसान नहीं... अरे आत्मा को मारना पड़ता है....'' इतनी बड़ी-बड़ी बातें करने वाले समीर भैया ने ..... क्या सचमुच आत्मा को इस हद तक मार डाला.... या केवल दोहरे मानदण्डों के चलते वे... इतने और इस कदर दिखावटी हो गये कि अपनी पत्नी की मृत्यु और बीमारी तक को भुनाने में जुटे हैं?.... मैं तय नहीं कर पा रही थी कि ये वही समीर भैया हैं जो सुनयना भाभी की आत्मा में बसते थे? ''छोड़ो भी.... तुम भी क्यों समीर के पीछे हाथ धोकर पड़ी हो.... वो जाने और उसका काम।'' पति ने मेरी बात को खारिज सी करते हुए कहा। नह

डर कहानी

चित्र
सुहाग पड़वा का व्रत था। सुबह पूजा करके परिवार के बुजुर्ग नाते-रिश्तेदारों के यहाँ चरणस्पर्श करने की परम्परा है। मैं उसी परम्परा का निर्वाह करते हुए आशीर्वादलेने अपने पिताजी के अभिन्न मित्र के घर पहॅुंची। दरअसल इस शहर में वे मेरे मायके की भूमिका निभाते हैं। मैं उन्हें काका-काकी कहती हॅूं। वे पिताजी की ही उम्र के हैं-यॅूं भरापूरा परिवार है पर बेटे नौकरयों पर ओर बेटियाँ अपने घर। बस बंगलेनुमा उस पुश्तैनी मकान में वे पति-पत्नी अकेले छूट गए हैं। इतने साल साथ रहते हुए पत्नी के प्रति एक नीरसता पसर जाती है। पत्नी के मन में अबभी उनके प्रति अपने कर्तव्यों का लगाव बरकरार है। या हो सकता है वह उन सबकी आदी हो गई हैं। पति के प्रति वे गजब की सजग हैं। रोटी-पानी, पूजा-पाठ, दवा-सेवा, कपड़े-लत्ते सब जरूरत वे ही पूरी करतीं और बिल्कुल वैसे ही जैसे हमेशा करती रहती थीं। शायद उनके चेहरे पर बढ़ापे की रेखाऍं इसीलिए कम दिखती हों क्योंकि उनके ऊपर दायित्व है। घर जमींदारी के वक्त का है। भरा हुआ हे। रजवाड़े के जमाने का भारी भरकम फर्नीचर है, ढेर सारा सामान ऐसा है जो अब उपयोग में नहीं आता पर कबाड़े में बेचा भी नहीं जाता। बच

समाजसेवापार्ट 5

समाजसेवा [पार्ट ४]

समाजसेवा part3

समाजसेवा पार्ट २[पार्ट १ पूर्व में अपलोड किया गया है]

स्वाति तिवारी साहित्य अकादमी भोपाल में रचनापाठ करते हुए

चित्र
झूठ की बुनियाद डॉ. स्वाति तिवारी महानगर कीतेज रफ्तार वाली आपाधापी-भरी जिन्दगी में तो चारों तरफ शोर ही शोर है । शोर भी इतना कि लोगों के कान या तो कम सुनने लगे हैं या कहें ,ऊंचा सुनने के अभ्यस्त हो गए हैं । इसी ध्वनि प्रदूषण,वायु प्रदूषण से बचने के लिए हमने घर शहर से बाहर बनवाया था,पर शहर का विस्तार दावानल की तरह फैलता हुआ अब हमारे घर के आस-पास भी पहुंच चुका है। पहले थोडी दूरी पर एक बड़ा कोचिंग इंस्टीट्यूट खुल गया, फिर एसटीडी, पीसीओ, फोटो कॉपी सेंटर, कैंटीन, मेस, ऑटोस्टैंड को आकार लेते क्या देर लगती है। फिर घर तेजी से बनते गए, फिर मंदिर, बाजार सब आते गए और हम एक वेल डेवलप्ड कॉलोनी में रहेते हैं! डेवलपमेंट शहर का हो, कॉलोनी का हो, तो खुद का भी होना चाहिए।बस पासवाला प्लॉट ले, घर से जुड़ता हुआ एक गल्स होस्टल बनवा डाला और वह भी चल निकला। पचास सीट का होस्टल मेरी उपलब्धि है। रामनवमी पर कॉलोनी वालों ने सामनेवाले मंदिर में रामायण का पाठ रखा तो सबसे ज्यादाचंदा मैंने ही दिया। रामजी की कृपा से होस्टल अच्छा चल रहा है, यही सोचकर। पर मुझे क्या पता था कि यह सिरदर्द का कारण बनेगा। रामायण शुरू होने से पहले
स्मृतियाँ जैये नीले समंदर पर उठती-गिरती उज्जवल लहरें जैसे सुख के चमकीलें दिन और दुख की स्याह रातें कितना अजीब है प्रकृति का क्रम एक रंग में से उभरता दूसरा रंग जीवन भी रंग बदलता है, हर पल,हर कदम पर तुम अकेले कहाँ, जीवनसाथी है तुम्हारे संग, मज़ा है तब जब हो आपसी विश्वास और प्यार की मिठास किए जाओं कर्म,मन रखना साफ ईश्वर भी तलाशता है सुन्दर घरौंदे जहाँ दें वह आशीष की सौगात दुरियाँ हो चाहे कितनी ही महसूस होते हो आसपास क्योंकि मन में बसी है प्यारी याद। समय बंद मुठ्ठी ये फिसल जाता है समय और हम सोचते रहते हैं कि वक्त हमारे साथ है पर, जब खोलते हैं मुठ्ठी तो लगता है कि समय हमारे पास बहुत कम है लेकिन तभी पता चलता है कि समय हमारी मुठ्ठी ये रेत की तरह फिसल गया और हम देखते ही रह गए। हम सोच रहे थे कि सफलता के शिखर पर पहुँच जाएंगे परंतु, फिर समय की कमी के कारण हम पीछे ही रह गए और जमाना देखता ही रह गया। हम सोच रहे थे, कि सफलता कैसे प्राप्त की जाए? फिर सोचा, क्यों न समय को सहेजकर रखा जाए परंतु, तभी याद आया, क्या समय हमारे पास है जब यह सोचा, तो याद आया कि सचमुच समय हमारी मुठ्ठी से रेत की तरह फिसल गया और ह

कहानी समाजसेवा

http://www.kavitakosh.org/

कहानी मुट्ठी में बंद चाकलेट

चित्र
स्वाति तिवारी अभी ठीक से नींद खुली भी नहीं थी कि किसी ने फोन घनघना दिया। एक बार तो मन में आया, बजने दूं अपने आप बंद हो जाएगा। सुबह-सुबह कौन नींद खराब करे। सर्द रात में सुबह-सुबह ही तो अच्छी लगती है नींद, जब बिस्तर गरमा जाता है रातभर में। एक बार बाहर निकले कि गई गरमाहट। ‘‘लो तुम्हारा फोन है...’’ माथे पर होठों का स्पर्श करते हुए मलय ने जगाया था। इतनी सुबह...उ... ऽऽऽ...कौन है? तुम ही देख लो।’’ ‘‘हैलो, जन्मदिन मुबारक हो!’’ ‘‘थैक्यू, थैक्यू! मैं हांफने लगी बगैर दौड़े ही। ‘‘मैं आ रहा हूँ दिल्ली, आज का दिन तुम्हारे साथ बिताने...।’’ उधर से आई आवाज में पिछले पचासवां जन्मदिन है, याद है बचपन में एक बार मैं तुम्हारा जन्मदिन भूल गया था।’’ ‘‘हां तो ?’’ ‘‘तब तुम्हारा गुस्सा...तौबा-तौबा! ‘‘ ऽऽऽ...।’’ ‘‘ तब तुमने वादा लिया था कि तुम्हारा जन्मदिन कम से कम पचास साल तक नहीं भूलूं... तो कैसे भूलता यह पचासवा जन्मदिन? ‘‘ओह! तुम भी ना ...।’’ मैने फोन रख दिया। अच्छा हुआ मलय अखबार और मेरे लिए चाय का प्याला लेने चले गए थे, वरना झूठ बोलना मुश्किल होता। उठकर बैठी तो पंलग के पास ड्रेसिंग टेबल पर एक गिफ्ट पैक और गुला

कहानी

चित्र
अचार स्वाति तिवारी मई की तेज धूप को देखकर याद आया कि चने की दल को धूप दिखाना है । ऑगन की धूप में पुरानी चादर बिछाकर स्टोर रूप में चले की दाल की कोठी निकालने गयी तो अचार का मर्तबान (बरनी) दिखाई दे गयी । दाल को धूप में फैलाकर पलटी तो अचार का ख्याल आया, लगे हाथ अचार को भी देख लूं । बर्नी पर कुछ नमक छिटक आया था उजाले में लाकर देखा तो यह दो साल पुराना अचार था । अम्मा कहती है - ‘पुराना अचार अचार नहीं औषधि हो जाता है - जब जी मचलाए, भूख ना लगे, स्वाद उतर जाए तो थोड़ा सा पुराना अचार चाट लो और चीर को चुस लो, सारा अजीर्ण खत्म ।‘ बात-बात में आजकल मुझे अम्मा के फंडे याद आ जाते हैं । शायद आजकल मैं बिलकुल अम्मा जैसी होती जा रही हूँ । उम्र का एक दौर ऐसा भी आता है जब हम ‘हम‘ नहीं रहते अपने माता या पिता की तरह लगने लगते हैं, वैसा ही सोचने लगते हैं । छोटी थी तो मैं हमेशा कहती थी ‘अम्मा मैं तुम्हारी तरह नहीं बनूँगी । सारा दिन बेवजह के कामों में खटती रहती हो ।‘ पर चने की दाल पर हाथ फेरते हुए मुझे अपने ही ख्याल पर हंसी आ गयी । अचार को भी परात में फैलाकर धूप में रख आयी । सोचा, इस बार अचार नहीं डालूंगी । घर मे

हमें भी फक्र है

चित्र
आह़ाजिन्दगी ,में उस्ताद अमजद अली खां ने बड़े फक्र के साथं लिखा है किअनेक राजनीतिकपार्टियों ने मध्यप्रदेश में शासन किया ,लेकिन किसी ने भी महानसंगीतज्ञ तानसेन के नाम पर संगीत अकादमी या संगीत संस्थान बनाने पर विचार नहीं किया .संभव है कि आज कि युवा पीढ़ी तानसेन के बारे में ज्यादा नहीं जानती हो , तानसेनसम्राट अकबर के नो रत्नों मेसे एक थे ,जिनका जन्म ग्वालियर में सन १६०६ में हुआ था .ग्वालियर ने देश को बेहतरीन संगीतज्ञ दिए .इस शहर कि तुलना ओस्ट्रिया ,जर्मनी या रूस जैसे देशों से क़ी जाती है.मित्रों अमजद जी ने फक्र यूँही नहीं किया है ,इस प्रदेश मे कला का गढ़ रहा है प्यारेखाँसाहेब , रहमत अलीखां,शंकर राव पंडित ,कृष्णन राव पंडित ,पर्वत सिंग ,माधव सिंग ,आमिर खां साहेब ,कुमार गंधर्व ,लता मंगेशकर ,किशोर कुमार ,उस्ताद अमजद अली खां ,कवि प्रदीप जैसे कलाकार दिए .पर विडंबना ही कहेंगे कि हम विरासतों को सहेजने में कमजोर पड़ते जा रहे है अपने प्रदेश से गहरा लगाव सभी को होता है मुझे भी है .मध्य प्रदेश कि कला और संस्कृति बहुत उर्वरा है जरुरत है सरकार के साथ साथ जनता के प्रयासों कीभी ,हम अपने प्रदेश को समझे ,पहच
बेहतर दुनिया के लिए के लिए बेहतर शब्द चाहिए .शब्द पंखों की तरह हलके ,मुलायम, सुनहरे ,उर्जावान हों जो हमें दुनियाकी सैर करादें.जो नीले गगन से लेकर खुरदुरी जमीं पे भी लायें तो खुरदुरे पन का एहसास न हो .क्या हम गढ़ सकते हैं एसे शब्द?

अब भाषा की दीवार नहीं

बन्द मुट्ठी

चित्र
आज सुबह से ही सामने वाला दरवाजा नहीं खुला था। अखबार बाहर ही पड़ा था। 'कहीं चाची....? नहीं, नहीं.....' मैं बुदबुदा उठती हूँ। एक अनजानी आशंका से मन सिहर जाता है, पर मैं इस पर विश्वास करना नहीं चाहती....। मन-ही-मन मैं सोचती हूँ, 'रात को तो बच्चों को बुला रही थीं।' मन में शंका फिर जोर मारती है, 'इस उम्र में, पलक झपकते कब, क्या हो जाए? हो सकता है, रात देर से सोई हों और नींद न खुली हो?' मैं आश्वस्त होने की कोशिश करती हूँ, 'पर रोज सुबह पाँच बजे से खटर-पटर करने लगती हैं।' मन में शंका का बीज फिर प्रस्फुटित होता है, गैस पर चाय का पानी चढ़ा इन्हें आवाज देती हूँ। ''सुनो! उठो ना! सामने वाली चाची अभी तक नहीं उठी हैं।'' ''ऊँहूँ, मुझे नहीं, तो चाची को तो सोने दो, बेचारी का बुढ़ापा है।'' ये फिर करवट बदल लेते हैं। ''नहीं! मुझे लगता है, कुछ गड़बड़ है।'' मैं सशंकित स्वर में बोलती हूँ। ''नहीं उठीं तो मैं क्या करूँ? जब उनके बच्चों को उनकी परवाह नहीं है, तो तुम क्यों सारे जमाने का ठेका लेती हो! सोने दो, रविवार है।'' ये

एक पिता एक सौ schoolmasters से अधिक है." -- English Proverb - अंग्रेजी कहावत

चित्र
वे हमेशा हर पल हमारे साथ है .विगत पांच वर्षों से उनकी आवाज नहीं सुनी उन्हें नहीं देखा .१६ जनवरी २००४ सूर्य उतरायण हुआ था ,कहते है स्वर्ग के द्वार सीधे खुले होते है ,वे तुरंत चले गए ,पता ही नहीं चला की एसे भी कोई जाता है पर सत्य को तो स्वीकारना ही होता है । बेटी का अपने पिता से रिश्ता कोई मृत्यु भी नहीं तोड़ सकती वे हैं यंही कहीं .हाँ देखे है मेने बरगद जेसे अपने बाबूजी . आज मेरे पिता का जन्म दिन है ,पिता का महत्व जीवन में सदा बना रहता है अभी तक कोई दिन एसा नहीं गया जब वो मुझे याद न आते हों .हर हालमें सकारात्मक बने रहने की प्रेरणा देने वाले मेरे पिता मेरे लिए एक आदर्श हैं .उनकी जिजीविषा को उनकी अदम्य विचार शीलता ,निर्मल पारदर्शिता ,दूसरों की मदद करते रहने की प्रवृति को मै सादर प्रणाम करती हूँ .मै परमपिता परमेश्वर को धन्यवाद् देती हूँ की उसने मुझे उनकी बेटीबनाया .मै हर जन्म मै unki ही बेटी बनना चाहूंगी .हैप्पी बर्थ दे पापा .