संदेश

सितंबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पुत्रीवती भवः का आशीर्वाद दीजिए

चित्र
   डा. स्वाति तिवारी क्या आप चाहते हैं कि आपका वंशज कुंवारा रह जाए? आपकी वंशबेल बगैर फले ही सुख जाए? आपकी देहरी पर दिया धरने वाला कोई ना हो? आपका नाम लेवा भी ना बचे? चौंकिए मत ऐसा ही कुछ भविष्य में होने वाला है अगर समय रहते नहीं सम्भले तो? 29 अक्टूबर 2007 को हैदराबाद में आयोजित एशिया-पेसिफिक कान्फ्रेंस में ऐसी ही कुछ भविष्य की चुनौतियाँ सामने आयी हैं। लिंग चयन के कारण भारत में सन 2050 तक 2 करोड़ 80 लाख पुरूषों की शादियाँ नहीं हो पाएंगी। इन चुनौतियों और चेतावनी के लिए हमारी सामाजिक व्यवस्था का ‘‘पुत्र-प्रेम’’ जिम्मेदार माना जा सकता क्योंकि हर किसी को सन्तान के रूप में बेटे की चाहत है। हमारे बुजुर्ग अगर ‘‘पुत्रवती भवः’’ और दुधों नहाओ पुतों फलो का आशीर्वाद देते रहे तो। यह दिन दूर नहीं है। सोचने और समझने का वक्त आ गया है आज यदि हम अपने हित और स्वार्थ पर ऐसा कोई निण्रय लेते हैं तो वह आगे जाकर हमारे ही परिवार और समाज के लिए घातक और चिन्ताजनक मोड़ ला सकता है। आपकी तरह और लोग भी पुत्र मोह में फंसे हैं - तो जब सबके घर पुत्र ही जन्म लेने लगेंगे तो पुत्र-वधु कहाँ से लाएंगे?