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एक मिसाल देनी होगी हमें, आने वाला कल हम पर गर्व कर सके  डा. स्वाति तिवारी आनेवाला कल आप पर गर्व कर सकता है कि इतने सालों से चला हा रहा विवाद इतनी त्रासद स्थितियों का साक्षी वह मुद्दा जो हिन्दू और मुसलमान के बीच दरार नहीं खाई खोदता रहा उसका फैसला जब आया तो उस दौर की जनता ने जिस धैर्य और सौहार्द्र का परिचय दिया था, देश की अमन और शान्ति का जो पाठ पढ़ा वो विश्वभर के लिए अचम्भे का कारण बना। ---- और हम अब धर्म की खाईयों को लाँघने की क्षमता अपने आम में विकसित कर चुके हमारे विवेक, हमारी धर्म निरपेक्षता को कोई भी विवाद, मुद्दे और फैसले विवेकशून्य नहीं बना सकते हमें इसका परिचय देना ही होगा। यह परीक्षा की घड़ी हैं ----- फैसले जीवन से, जीवनमूल्यों से ही तो निकलते हैं तो क्यों हम उन्हीं जीवनमूल्यों के विपरीत चल पड़ते हैं ---- जीवन, मानवता, विकास और राष्ट्र हमारे हर फैसले से ज्यादा महत्वपूर्ण है ---- उसके खातिर हमें अपनी ही असहनशीलता के विरूद्ध लड़ना होगा क्योंकि हम असहनशील ----- होकर अपनी ही सहनशीलता का गला घोंटते आए हैं --- पर अब नहीं --- अब और तो बिलकुल नहीं क्यों, क्योंकि जनता समझ गयी हैं कि
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सद्भाव-सौहार्द्र के  फैसले                                                         डा. स्वाति तिवारी आजकल वातावरण में एक भय की अनजानी सी लहर व्याप्त है। हालात 1992 जैसे नहीं रहे। वर्तमान समाज काफी समझदार हो गया है, फिर भी लोग सतर्क हैं - राशनपानी के बन्दोबस्त हो रहा है। पता नहीं, कब कहाँ - क्या हो जाए? साम्प्रदायिक विद्वेष की जो कीमत समान ने चुकाई है, उसके बाद नागरिकों की सतर्कता, उनमें व्याप्त भय की लहर स्वाभाविक है। 28 सितम्बर की तारीख यदि उन्हें डरा रही है, जिस दिन अयोध्या की विवादित भूमि के मालिकाना हक को लेकर उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट की लखनऊ शाखा का निर्णय आना है, तो इसमें अस्वाभाविक खैर कुछ भ्ज्ञी नहीं है। एक फोन था - 28 के बाद प्रोग्राम रखना - अभी मत भेजना बहू को। 24 के फैसले के बाद देखते हैं कि क्या होता है? गैस की टंकी मंगवा दो, पता नहीं बाद में मिले ना मिले? आते वक्त दूध के पावडर का पैकेट लेते आना, पड़ा रहेगा घर में। ऐसे न जाने कितने संवाद हैं, जो प्रायः सभी घरों में सुनने को मिल रहे हैं और रोज नई-नई आशंकाओं को जन्म दे रहे हैं। हम एक देश में रहते हैं। हिन्दू की गाड़ी का ड्रायवर
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डर सुहाग पड़वा का व्रत था। सुबह पूजा करके परिवार के बुजुर्ग नाते-रिश्तेदारों के यहाँ चरणस्पर्श करने की परम्परा है। मैं उसी परम्परा का निर्वाह करते हुए आशीर्वादलेने अपने पिताजी के अभिन्न मित्र के घर पहॅुंची। दरअसल इस शहर में वे मेरे मायके की भूमिका निभाते हैं। मैं उन्हें काका-काकी कहती हॅूं। वे पिताजी की ही उम्र के हैं-यॅूं भरापूरा परिवार है पर बेटे नौकरयों पर ओर बेटियाँ अपने घर। बस बंगलेनुमा उस पुश्तैनी मकान में वे पति-पत्नी अकेले छूट गए हैं। इतने साल साथ रहते हुए पत्नी के प्रति एक नीरसता पसर जाती है। पत्नी के मन में अबभी उनके प्रति अपने कर्तव्यों का लगाव बरकरार है। या हो सकता है वह उन सबकी आदी हो गई हैं। पति के प्रति वे गजब की सजग हैं। रोटी-पानी, पूजा-पाठ, दवा-सेवा, कपड़े-लत्ते सब जरूरत वे ही पूरी करतीं और बिल्कुल वैसे ही जैसे हमेशा करती रहती थीं। शायद उनके चेहरे पर बढ़ापे की रेखाऍं इसीलिए कम दिखती हों क्योंकि उनके ऊपर दायित्व है। घर जमींदारी के वक्त का है। भरा हुआ हे। रजवाड़े के जमाने का भारी भरकम फर्नीचर है, ढेर सारा सामान ऐसा है जो अब उपयोग में नहीं आता पर कबाड़े में बेचा भी नहीं
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एक नया रिश्ता डा. स्वाति तिवारी '' हॉल के बीच वीच वाले खम्भे पर गेंदे के फूलों की लड़ियाँ बॉधवा लेते हैं, क्यों काका ? '' '' हॉ बिटिया, अच्छे लगेंगे । '' '' यहाँ रंगीन बल्बों की झालरें ठीक रहेंगे,और गैट के पास हरे-भरे पौधों से सजावट करवा देते हैं । '' '' बिटिया, वो टेंटवाला आया है, लाइट कितनी लगवानी है ?'' रामू काका ने अनुभूति को बताया । '' आई काका,वहीं आकर बताती हॅू । '' '' ठीक है बिटिया, जल्दी,जल्दी आकर बता दो ये जल्दी मचा रहे हैं । '' '' हाँ, अब बताइए ! देखिएं उपर शामियाने में बडेत्र बल्ब और गार्डन के बाउण्ड्री वाले पौधों पर और इन सभी प्लांट्स पर टिमटिमाते लट्टेू ।''अनुभूति ने टेंटवाले से सजावट व लाइटिंग का निर्धारण सा करते हुए कहा । '' मैडम, यह तो बहुत कम हैं । पिछली बार तो इससे ज्यादा लाइट लगवाई थी । '' टेंट हाउस वाला अपना बिजनेस देख रहा था । '' नहीं.........नहीं..........माँ को ज्यादा जगमगाहट पसंद नहीं हैं ।'' &