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जनवरी, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
जब जंगल हुए लाल ,प्रकृति ने टेसू पर फैलाया गुलाल ,तब बसंत का आगमन हुआ है यह स्वमेव पता चल जाता है ऋतू परिवर्तन की यह सुचना है जो प्रकृति का अटल नियम भी जिसकी पुनरावृति एक निश्चित समयांतराल पश्चात् होती ही है यह परिवर्तन जीवन के लिए बहुत जरुरी भी है जीवनोपयोगी एन ऋतुओं के क्रम में आने वाला बसंत एक मोसम ही नहीं जीवन सम्वेदनाओं के साथ जीवन दर्शन भी है जीवन के अदभुद सौन्दर्य के दर्शन की व्याख्या के लिए प्रकृति की बसंत शेलिअदभुद ,अनोखी ,अनुपम और अद्वितीय हैऋतू परिवर्तन के क्रम में बंधी बस्न्त्रितु आगईहै----------- चंचल पग दीप शिखा के घर ,गृह, वन,मृगवन मे आया बसंत , सुलगा फागुन का सूनापन सौंदर्य शिखाओं में अनंत अधरों की लाली से चुपके ,चुपके ,कोमल गाल लजा आया पंखुरिओं को काले पीले धब्बों से सजा यह बसंत अपने आप में भरपूर कशिश लिए एक खुशनुमा माहोल देता है क्या चाहते है हम? क्या है हमारी जीवन आस ?यदि एस प्रश्न पर विचार किया जाये

जीवन एक मुखर प्रश्न

मन के केनवास पर उभरते प्रश्न कभी उत्तरित नहीं होते और कभी अनुत्तरित भी नहीं रहते इन उत्तरों अनुत्तरों के मध्य प्रश्नकर्ता का प्रश्न उत्तरदाता का मोन या कुछ कह्जाने की अद्य्म लालसा , पूछने बताने की अभिलाषा , स्पन्दित होती है तब लगजाते है कई प्रश्न चिन्ह दे जाती है उत्तर मोन खामोशियाँ ढल जाते है अकोश बिखर जाती दर्द की पखुरियां भाव बह जाते हेनयन जल में जिन्दगी खुद बन जाती है एक प्रश्नचिन्ह ओर जीवन एक मुखर प्रश्न ?

रेशमी नदी जीवन राग की

न मै सच हूँ ,न तुम सच हो , सच है हमारा साथ कितने वर्ष हुए इसे नहीं जानती मै जानती हूँ उस एक पल कों जब तुम्हारे साथ चली थी मै तभी से , सात रंगों का झरना झरता रहा मन के भीतर लगा था कोई चीड़ियाँ चहक रही थी झाड़ी मे छिपकर रंगों का इंद्र धनुष उतर आया था हम पर तभी से , नदी रेशमी जीवन राग की बह रही है अन्तःस्थल मे

अंजुरी में भर कर

एक फूल ब्रह्मकमल का अचानक मिलगया मुझे हाथेली के बीच अंजुरी में भरकर जिसकी पंखुरियों पर लिखा था तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ एक फूल ब्रह्मकमल का कर गया मेरे यादों के उपवन को फिर हरा भरा एक फूल ब्रह्मकमल का महका गया , मेरे मन को मेरे तन को इनमहकती पखुरियों से यादआई तेरी बातों की तेरी महकती बातों की यादों से एक फूल ब्रह्मकमल का अच्छा लगता था

ब्रह्म कमल एक प्रेम katha

हिमालय की चोटियों पर भोर होते से सांझ ढले तक जब मन्दिरों से घंटे और शंखों की आवाजें आती है चट्टानों के बीच अचानक कई ब्रह्मकमल खिल ऊठते है प्रकृति के ये प्रस्फुटन होते है कितने पवित्र ? इतने पवित्र की आस्था और विश्वास के साथ श्रद्धा के फूल बन जाते है ---------------ब्रहमकमल . स्वाति तिवारी { उपन्यास से ---------ली पंग्तियाँ }