संदेश

अप्रैल, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
प्रसंग- मुख्तारन माई सुप्रीम कोर्ट का फैसला सवाल स्त्री अस्मिता का डॉ स्वाति तिवारी मुख्तारन माई को एक मार्मिक कहानी मत बनने दीजिए ! बस अब और नहीं ! यह श्रृंखला यहीं थमनी चाहिए । देश कोई भी हो इससे क्या फर्क पड़ता है स्त्री की देह को अपमानित करने का यह सिलसिला हर वर्ग हर समाज और हर देश मेें जारी है । न्याय के नाम होने वाले ऐसे अन्यास के विरूद्ध एक अन्तराष्ट्रीय सामूहिक आन्दोलन की आवश्यकता है और ऐसा न्याय करने वालों के विरूद्ध सामाजिक आन्दोलन की गगन भेदी आवाज उभरे वरना मुख्तारन माई की इतनी लम्बी लड़ाई और हिम्मत बेकार हो जायगी फिर कोई बसमतिया, भंवरी बाई और मुख्तारनमाई इस दुष्कर्म के विरूद्ध आवाज उठाने की हिम्मत नहीं कर पायगी । मुख्तारनमाई को इस वक्त न्याय से ज्यादा जरूरत है एक जनमत की जो उसके मनोबल को उसकी हिम्मत को टूटने से बचा सके अगर मुख्तारन निराश हो गयी तो यह किसी एक मुख्तारनमाई की हार नहीं यह स्त्रीजाति की हार होगी । आज मुख्तारनमाई है कल भंवरी बाई थी और उससे पहले बसमतिया को हम भूले नहीं है । बसमतिया के साथ उसके मालिक ने बलात्कार किया था उसी के पास वह बंधुआ मजदूर थी ! विधवा थ
सामाजिक संबंधों की ऊष्मा की मृत्यु है, अनुराधा की मौत   स्वाति तिवारी सीने में जलन आँखों में तूफान-सा क्यों है, इस शहर में हर शख्स परेशान-सा क्यों है। क्या कोई नयी बात नज़र आती है हममे, आईना हमें देख के हैरान सा क्यों है। शहरयार की इस गज़ल में महानगरों की जीवन शैली से उपजी पीड़ा, निराशाओं के दौर और एक दुखे हुए दिल की तमाम कैफियत मौजूद है। और कल से कैमरे पर देखकर आईना ही नहीं सारा देश हैरान है। ये पंक्तियां बार-बार मस्तिष्क में उथल-पुथल के साथ उभर रही हैं। जाने कितने करोड़ लोगों का शहर दिल्ली। एक भरापूरा आबाद शहर! उसमें दो बहनों ने अकेलेपन या न जाने किस गम में स्वयं को इस हद तक अकेला कर लिया कि सात माह तक वे एक फ्लैट में बन्द रहीं और भागती हुई दिल्ली को कानों कान खबर भी नहीं हुई और जब हुई तो बहुत देर हो चुकी थी। समय रहते अगर भाई प्यार से आकर मिलता या पड़ोसी दरवाजा खटखटाते कि आपको कई दिन से देखा नहीं है। या नौकरी छोड़ने के बाद सहकर्मी सुख-दुख पूछते जानते कि आजकल कहाँ हो? तो शायद अनुराधा या सोनाली की दिल दहलाने वाली कहानी नहीं बनती! पर सारा शहर और शहर के हर शख्स को अपनी ही