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अप्रैल, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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भोपाल गैस त्रासदी ताकी सनद रहे बाकी शुरू करते हैं यूनियन कार्बाइड से। एक ऐसा कलंक, जो हमारे माथे पर गहरा लगा है। हादसे ने तो इसे दुनिया के सामने जाहिर कर दिया। देश भर में हर दिन होने वाले छोटे-मोटे हादसों का सबसे बड़ा प्रतीक, जिनमें हमारी व्यवस्था उतने ही निष्ठुर और निर्मम रूप में सामने आती है, जितनी भोपाल में देखी गई। तारीख क्क् जनवरी ख्क्क्। गैस पीड़ित औरतों की दुनिया में दाखिल होने से पहले मैं इसी कलंकित कार्बाइड को नजदीक से देखना चाहती थी। कीटनाशकों के उत्पादन का यह अमेरिकी उद्योग, जो भारत में मौत का दूसरा भयावह नाम बन गया। हादसे के ढाई दशक गुजरने के बाद वह किस हाल में है, यह जानने के लिए मैंने उसी की तरफ कदम बढ़ाए। मैंने जानबूझकर वहां तक जाने का लबा रास्ता चुना जो पुराने भोपाल से होकर जाता है। भोपाल की इन्हीं सड़कों पर उस रात मौत का तांडव हुआ था। इन पर अब तक लाखांे पन्ने लिखे जा चुके हैं। हजारों लैक एंड व्हाइट तस्वीरें छपी हैं। मैंने भी देखी हैं। लाशों के ढेर। बच्चे, बूढ़े, जवान, औरतें और पशु-पक्षियों की मौत से लबालब तस्वीरें। मौत अपनी फितरत के मुताबिक ही बेरहम थी। उसने हिंद
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जितने किरदार, उतनी कहानियाँ      स्वाति तिवारी भोपाल गैस त्रासदी यानी औद्योगिक इतिहास में भीषणतम हादसा। हजारों लोगों का उससे प्रभावित होना और आज तक निरन्तर उसे भोगना। हम मात्र कल्पना ही कर सकते हैं पर कल्पना के साथ त्रासदी से जुड़े सवालों के दायरे जब विस्तृत होते गये, तब जरूरी लगा कुछ लोगों से मिलना। पर अचानक किसी से मिलना संभव नहीं होता। गैस त्रासदी से जुड़े एक संगठन के श्री बालकृष्ण नामदेव से बात की। पता चला लिली टॉकीज के सामने जो स्वेटरवालों की दुकानें हैं ठीक उसके पीछे पार्क है - नीलम पार्क। वहाँ हर रविवार एवं गुरूवार को निराश्रित महिलाएं, जो संगठन से जुड़ी हैं, वे सब आती हैं। बारह बजे से चार बजे तक वहाँ मीटिंग होती है। श्री नामदेव जी ने कहा कि आप वहीं आ जाइए.... मुलाकात हो जाएगी। रविवार की वह दोपहरी जब सारा देश कड़ाके की सर्दी से ठिठुरता हुआ अपने-अपने घरों में आराम फरमा रहा था या अपने ही घरों के आँगन, छज्जे और ओटलों पर धूप सेंक रहा था..... मैं पार्क पहुंच गई...... पार्क में बने एक चबूतरे पर कुछ महिलाएं दिखीं, जो श्री नामदेव के साथ अपनी-अपनी समस्याएं बताने में लगी थीं, धूप