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मई, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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आज आप सारा दिन कुछ इस तरह दिखें इस लिए खुश रहे । २.आज आपको कुछइस तरह खुबसूरत विचार आते रहे .शुभ कामनाएं

आज का विचार

‘‘हिन्दू धर्म का वर्णन एक शब्द में इस प्रकार किया जा सकता है—उचित कार्य करना।’’ डॉ. एस. राधाकृष्णन
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नव निर्माण एक विशाल जंगल जंगल में एक बरगद का पेड़ पेड़ पर सुन्दर सा घोंसला घोंसले में बसा पक्षी का संसार तेज हवा का झोंका आया और , सुन्दर घोंसला हो गया तितर-बितर पक्षी की अल्हड़ता का हुआ अंत बिखरे घोंसले को देख कर नन्हा पक्षी चिंतित था अब , नव निर्माण के लिए

आज का विचार

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‘‘ थोड़ी सी मधुरता बड़ी कटुता को समाप्त कर ही देती है।’’ जॉन कीट्स
आज का विचार ‘‘ शिक्षा वह ज्ञान है जो यह बताता है कि अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व का उपयोग किस प्रकार किया जाए।’’ हेनरी वर्ड बीचर

आज क विचार

सफलता का रहस्य उद्देश्य की स्थिरता है।’’ बेन्जमीन डीसरैली
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म.प्र. में तैयार होगा साहित्यिक गजेटियर -------------------------------------------------------------------------------- भोपाल । गजेटियर की तर्ज पर अब प्रदेश के हर जिले का साहित्यिक इतिहास भी लिखा जाएगा। संस्कृति विभाग ने इसकी तैयारियाँ शुरू कर दी है। इसके लिए साहित्यिक रचनाओं का जिलावार संकलन कर प्रकाशित किया जाएगा। इस अनूठे कार्य की जिम्मेदारी संस्कृति विभाग साहित्य अकादमी को सौंपने जा रहा है। संस्कृति सचिव ने बताया कि हर जिले का अपना विशिष्ट साहित्यिक इतिहास है। लेकिन उसका व्यवस्थित संकलन उपलब्ध नहीं है। योजना के तहत हर जिले के स्थानीय रचनाकारों अथवा प्रवास पर आए लोगों ने वहाँ रहकर जो साहित्य रचा होगा, उसे संकलित कर प्रकाशित किया जाएगा। यह साहित्य केवल हिन्दी में ही नहीं क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों में भी हो सकता है। इसमें मालवी, बुंदेली, निमाड़ी, बघेली आदि विभिन्न भाषाओं में रची गई कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास, संस्मरण आदि शामिल हो सकते हैं। केवल क्षेत्रीय संस्कृति नहीं अगर किसी जिले में कॉसमोपॉलिटन (मिली–जुली) संस्कृति है, और उस पर कुछ लिखा गया है तो वह भी इसमें शामिल किया जाएगा। यो
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जीवन की तीन बचपन की मेरी महत्वाकांक्षाएं बगुले के पंखों सी उज्जवल , सुबह की कच्ची धूप सी रुपहली और, मासूम कलि सी कोमल थी जो, सागर सी गहरी आकाश सी अनंत धरा सी धेर्यवान और ,पंछी सी नादाँ थी योवन की मेरी महत्वाकांक्षाएं जो, दोपहर की धूप सी ज्वलंत हें आकाश सी बिना छोरवाली शितिज सी सुन्दर पर मृगमरीचिका सी मिथ्या है समाज के राक्षसी पंजों में फंसी मुरझाई जीवन मूल्यों से संघर्ष करती कली की तरह है ,और आगे मेरी वृद्धा होती महत्वाकांक्षाएं जो होगीं सांज की ढलती कलासयी धूप सी निस्तेज सागर की गहराई से निकल आकाश में उड़ी और , धरा पर गिरने वाली पानी की नन्ही बूंदों सी जो स्पर्श पाते ही बिखर जाती है
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ना ----मै --------नी -------बोलना ---- जब भी सोंचती हूँ अब मेँ चूप रहूंगी , तब मन की चंचलता हिलोले ल्रती है आदतों का बचपना पुकारने लगता है आशाओं का स्वप्न संवरने लगता है भावनाओं का ज्वार उफनने लगता है आखों का जल छलकने लगता है और तब , ना चाहते हुए भी एक कंपकंपातीआवाज निकल जाती है और मै फिर बोलने लगती हूँ

बोले रे पपिहरा

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स्वाति एक नक्षत्र हे जिसकी बूंदें सिप में गिरकर अनमोल मोती बनती हें .नक्षत्र जिसके लिए चातक पक्षी वर्षभर प्यासा रहता हे स्वाति नक्षत्र की बुँदे उसके लिए अम्रत बनती हे .जिसकी बुँदे कदली के पत्तों पर गिरकर कपूर बन उड़ जाती हे .एक नक्षत्र जिसकी बूंदें शेष नाग के मुंह में गिरजाये तो जहर बनती हे .स्वाति एक नक्षत्री बादल .स्वाति अनमोल मोती का सृजक .पपीहे की प्यास .पत्ती.. पे ओस की रुकिहुई बूंद .शेषनाग का अलंकार .

संकल्प

हम भी बुन लेते हैं संकल्पों के जाले, ठीक उस मकड़ी की तरह जो घर का सपना देखती उलझ जाती है ,स्वयं के बुने जालों में हमारे स्वप्नों के ये जाल महीन तारों से बुने होते है ,चटक रंगों ,रेशमी तारों के वावजूद ,जकडन की चिपचिपाहट फंस जाने की उकताहट से मुक्त होनेकी छात्पताहत में , हम एक जाले से निकलते हुए दूसरा जला बुनने लगते है जाल दर जाल बुनने और निकलने की उलछन में हम और उलझते जाते है अपने ही बुने मकड जालों में अपने ही मकड जालों में
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जीवन उत्सव ऐसे भी पल आये जीवन में अखिंयाँ रह गयी ठगी ठगी मन अचरज से भर आया तन लहराया गंध -सुगंध सा जीवन उत्सव कहलाया ऐसे भी पल आये जीवन में मन उपवन -सा महकाया दीप्त शिखा का उज्जवल एक स्वप्न -सा उभर आया मुक्त का सीपी से हो बंधन ऐसा ही बंधन बंध आया ऐसे भी पल आये जीवन में हाथ जोड़ साथं माँगा था तुमने पल दो पल का और हम? हम जीवन ही अर्पित कर आये अपनी एक ख्वाबों की दुनिया दो गज जमीं में दफना आये ऐसे भी पल आये जीवन में आँगन गुंजन युक्त हुआ हिंडोले अम्बुआ की डाली सुर्ख चम्पई सांजशरमाई हाथों में मेहँदी रच आई ऐसे भी पल आये जीवन में जीवन उत्सव कहलाया

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा

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कल ही की बात है , अपने गांव गई थी , गांव कभी साढ़े बारह तालाबों से पहचाना जाता था ,उसी गांव मे पानी आज सबसे बड़ी समस्या हो गया है .सुन्दर शीतल कुएं ,बावडियों वाला राजा भोज का धार नगर टेंकरों से पानी लेता है .पानी अडोंसपड़ोंससे झगडे का कारणबन गया है . पानी की धार पर शायद धार नगर का नाम रहा हो ,आज पानी के धार के अवशेष भी मिट रहे है .तालाबों में कालोनी बस गई .पर कुओं ,बावड़ी को कालोनी काटने वालो से बचाना होगा ,क्या पता कल कोई बावड़ी को भी महल दुमहले में बदल दे ?कुओं को मल्टी का रूप देदे ?चलो हम सब मिल कर कुओं ,बावड़ी के जल स्त्रोंतो को खोले और साफ करदे ,अपने घर के बारिश के पानी को धरती में उतार दें । पानी को कितना उलिचेंगे ,?इस बार धरती में डाले पानी इसके लिए चलो अपने खेतमें इक पोखर बानाय्र .