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मार्च, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

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आजकलkhaniलिव इन रिलेशनशिप

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दरवाजे पर किसी ने हल्की-सी दस्तक दी। दरवाजा अंदर से बंद है। अब क्या करे? मन नहीं है उठने का और किसी से बात करने का, पर उठकर खोलना तो पड़ेगा। क्या पता, प्रणव ही हो और कुछ भूल गया हो, पर चाबी, रूमाल, फाइलें सब याद रखकर दे तो दिए थे और प्रणव के जाते ही प्रतिमा ने दरवाजे का हैंडल लॉक किया और चिटकनी लगा ली थी। उसने उठकर चिटकनी खोली तो दरवाजे पर अपरिचित महिला खड़ी थी। वह मात्र चेहरे से पहचान रही थी कि वह उसके सामने वाले फ्लैट में रहती है। प्रणव के आने और जाने के वक्त प्रतिमा ने दरवाजा खोलते हुए या बंद करते वक्त इस महिला को बालकनी में खड़े देखा है। दरवाजे को पकड़े प्रतिमा उलझन में थी, आइए कहूं या नहीं? ''हलो! मैं मिसेस कुलकर्णी आपके सामने वाले फ्लैट में....'' आगंतुक महिला ने बातचीत शुरू की। ''ओह, हां! आपको बालकनी में खड़े देखा है, आइए।'' प्रतिमा सहज होने की कोशिश के साथ दरवाजे से हटकर अंदर आ गई। घर की सजावट का मुआयना करती पड़ोसन मिसेस कुलकर्णी ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया। ''एक महीना हो गया, जबसे आप लोग रहने आए हैं, रोज सोचती हूं, आपसे मुलाकात करने की, पर जब
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पुस्तक समीक्षा स्त्री-संसार का कोलाज़ रचती कहानियां - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ----------------------------------------------------- पुस्तक - बैंगनी फूलों वाला पेड़ प्रकाशक - सामयिकप्रकाशन, 3320-21,जटवाड़ा लेखिका- स्वाति तिवारी नेताजी सुभाष मार्ग,दरियागंज नईदिल्ली-2 मूल्य - रु.200/- मात्र ----------------------------------------------------- हिन्दी कथा साहित्य में स्त्री के अस्तित्व को लेकर सदा दो धाराएं सामने आई हैं। एक धारा पुरुषवादी सोच की और दूसरी स्त्रीवादी सोच की। दोनों में अकसर टकराव की स्थिति रहती है। जबकि सच यह है कि स्त्री और पुरुष परस्पर मिल कर परिवार, समाज और भावी पीढ़ी का सृजन करते हैं। फिर यह टकराव की स्थिति उत्पन्न क्यों होती हैं? इसका उत्तर स्त्री के वैवाहिक जीवन के उस पक्ष में निहित है जहंा पति 'परमेश्वर' न भी हो किन्तु परिवार का सर्वोच्च शक्ति होता है और स्त्री पौराणिक कथाओं की भांति शक्ति का पर्याय माने जाने पर भी शक्तिहीन खड़ी मिलती है। उसे परिवार संबंधी किसी भी निर्णय को अंतिम रूप से लेने का अधिकार नहीं होता है। इस बि

पुस्तक समीक्षा

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>स्त्री के इर्द गिर्द >- हिंदी कहानी संसार में जिन महिला कथाकारों ने इधर लगातार कथा सृजन किया है और जिनकी कहानियाँ सहज रूप में पाठकों को उस दुनिया में ले जाती हैं जिनके वे सक्रिय पात्र हैं, उनमें स्वाति तिवारी का नाम उल्लेखनीय है। जीवन को एक नई दृष्टि से देखती इनकी कहानियाँ उस अदृश्य तार को पकड़ने की कोशिश करती दिखती हैं जो इस उत्तर आधुनिकता की ओर भागते समाज को आज भी उम्मीदों और आस्थाओं से जोड़े हुए है। 'बैंगनी फूलों वाला पेड' स्वाति तिवारी का नवीनतम कथा संग्रह है। इससे पहले उनके छः कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। 'बैंगनी फूलों वाला पेड़' में कुल 21 कहानियाँ संग्रहित हैं। संग्रह की पहली कहानी जो संग्रह का शीर्षक भी है एक प्रेम कथा है। प्रेम एक शाश्वत सत्य है। वह सृष्टि के आरंभ से आज तक प्रकृति के कण कण में तो व्याप्त है ही, रचनाकारों की कलम से हर विधा में अपनी जगह भी बनाता चला गया है। शायद यह एक ऐसा तत्व या भाव हैं जिसमें अतिव्याप्ति शब्द की कोई जगह नहीं। वह अपनी परिणति पर पहुँचे या न पहुँचे, स्मृतियों में तो रहता ही है। कहानी के पात्र तनु और विनय विस्मृत होते पन्

मृगतृष्णाkahani

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आसमान छूने की मेरी अभिलाषा ने मेरे पैरों के नीचे से जमीन भी खींच ली, पर तब ... मैं जमीन को देखती ही कहां थी। मैं तो ऊपर टंगे आसमान को ताकते हुए अपना लक्ष्य पाना चाहती थी । तब अगर कुछ दिखाई देता था तो वह था केवल दूर-दूर तक फैला नीला आसमान, जहाँ उड़ा तो जा सकता है, पर उसका स्पर्श नहीं किया जा सकता है। ऊंचाइयों का कब स्पर्श हुआ है जब हाथ उठाओं वे और ऊंची उठ जाती हैं--मरीचिका की तरह। एक भ्रम की तरह आसमान जो नीला दिखता है पर कैसा है, कौन जानता है? जमीन कठोर हो, चाहे ऊबड़-खाबड़, पर उसका स्पर्श हमें धरातल देता है, पैरों को खड़े रहने का आधार। पर यह अहसास तब कहां था ? मैं तो जमीन के इस ठोस स्पर्श को पहचान ही नहीं पाई। अंदर-ही-अंदर आज यह महसूस होता है कि जमीन से सदा जुड़े रहना ही आदमी को जीवन के स्पंदन का सुकून दे सकता है। आज दस वर्षों बाद उसी शहर में लौटना पड़ रहा है, और जीवन की किताब का वह पृष्ठ जो मैं यहां से जाते वक्त फाड़कर फेंक गई थी, आज वहीं पन्ना हवा के झोंके से उड़ आए पत्ते की तरह फिर मेरे आंचल में आ पड़ा है। उस पर लिखा जीवन का स्वर्णिम इतिहास फिर स्मृति-पटल पर उभरने लगा। यादों का भी क्या खेल है