संदेश

अगस्त, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

jiwan ke kuch mayane ese bhi

चित्र
26 अगस्त को मदर टेरेसा का शताब्दी वर्ष था .वे १०० साल की होती अगर हमारे बीचहोती तो . दुनिया की एक महान  माँ   हजारों बच्चों की माँ होने के बावजूद .सच्चे मन से कितनो ने उन्हें याद किया ?मानवता  की सेवा में जीवन अर्पण करने वाली इस    माँ को मेरी श्रधान्जली .कल भूल गई थी आज एक दिया उनके नाम का प्रज्वलित किया .
प्रशासन को सख्त रवैया अपनाते हुए एस्मा लागु करदेना चाहिए .जूनियर डोक्टर जब अभी ग्रामीण इलाके में नहीं जाना चाहते तो बाद में क्या जायेंगे .?डोक्टर की डीग्री में पहली शपत मानवता की सेवा होती हे .वो  ग्रामीण या शहरी नहीं होती .कल वो कहेंगे की उन्हें केवल महानगर में ही नोकरी करनी हे .राज्य शासन को चाहिए वो अत्यावश्यक सेवा प्रतिरक्षण अधिनियम  एस्मा लागु करे समाज और मानवता के लिए यह जरुरी हे .  डोक्टर का दायित्व  सेवा से हट कर कमाना होता जा रहा हे जो उनकीअसंवेदन शीलता दर्शाता हे .
जनसंख्या स्थिरीकरण पर केन्द्रित हमारा विकास और जनसंख्या नियंत्रण  डा. स्वाति तिवारी सामाजिक सरोकारों में मेरे सूचनातंत्र का सबसे प्रबल खबरची मेरी कामवाली बाई, माली और चौकीदार हैं। कल फिर कमलाबाई ने मेरे चिन्तन को नई दिशा दी। हुआ कुछ यूँ कि कमलाबाई कल अपने साथ एक और बाई लेकर आयी यह कहते हुए कि आपके बंगले में सर्वेंट क्वाटर खाली है आप इसको दे दो। कमरे के बदले यह झाडूफटका कर देगी। मैंने पहला ही सवाल किया कि परिवार में कितने लोग हैं? कमला ने ही जवाब दिया ‘‘पाँच बच्चे, पति पत्नी और सास बस।’’ ‘‘बस मतलब? और होने में क्या?’’ कमला मेरे रूख को पहचान गई फट से उसने बात संभाली पाँचों बच्चे साथ नहीं रहते बड़े वाले दोनों बच्चे गाँव में इसकी माँ के साथ रहते हैं, आते जाते है कभी - कभी। मैंने अपना गणित ठीक करते हुए गिना पाँच दो सात और एक आठ ? कमरा दस बाय दस का? एक कमरा मात्र? नहीं मुझे कमरा नहीं देना। कमरा बहुत छोटा है तुम्हारे परिवार के लिए। फिर आठ आदमी मतलब आठ बाल्टी पानी नहाने का और आठ बाल्टी अन्य काम के लिए। फिर बिजली, फिर घर की आबोहवा? बाई चली गयी। पर प्रश्न और चिन्तन छोड़ गई मैंने अपन

लाल फीता शाही सेमुक्ति

लाल फिताशाहों काम करो वरना भुगतो खामियाजा स्वाति तिवारी हमारे देश में सरकारी दफ्तरों में कर्मचारियों से लेकर अफसरों को जनता का माई बाप समझना इस देश की एक बहुत बड़ी त्रासदी है। लोगों का काम अटकाना,उसमें अडंगे लगाना और उन्हें छोटे-छोटे से काम तक के लिए चक्कर लगवाना इनकी फितरत बन गयी है। यह किसी खास राज्य, क्षेत्र अथवा विभाग की नहीं बल्कि पूरे देश की समस्या है । ऐसा करने में उनके निहित स्वार्थ तो जुड़े ही होते हैं, उनकी परपीड़क मानसिकता और खुद को जनता से ''बड़ा'' जताने की प्रवृति भी काम करती है । हालत इतने बद्तर हो गये है कि बुजुर्ग तो यह तक कहते सुने जाते हैं कि ''इससे तो अंग्रेजों का राज अच्छा था'' । आजाद भारत में इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है । बड़ी तकलीफ होती है जब घरेलू महरी आकर कहती है मेडमजी कूपन नहीं बन रहा- कल फिर जाऊंगी राशनकार्ड बनवाने । बच्चे का स्कूल रिक्शेवाला दो दिन नहीं आया- पूछने पर कहता है लड़के के एडमीशन के लिए जाति प्रमाण-पत्र दे ही नहीं रहे है - कहते है अगले हफ्ते आना - दो दिन की मजदूरी गई और बात वहीं की वहीं है । पर तुम तो पिछले हफ्त

क्या जबान फिसल गई थी ?

वाह विभूति नारायण जी वाह क्या भाषा हे एक कुलपतिजी की ?जिस विश्वविध्यालय में आचार्यजी इतनी सुसंस्कृत शब्दावली में नारी का सम्बोदन करते हों वंहा की हिंदी दुनियाभर में नाम रोशन करेगी .महात्मा गाँधी हिंदी वि वि के कुलपति ने नया ज्ञानोदय मे लेखिकाओं के लिए जिस अपशब्द का उपयोग किया हे उसपर पहली प्रतिक्रिया उनकी लेखिका पत्नी ने देनी चाहिए थी .किसी एक लेखिका की आत्म कथा को सभी लेखिकाओं के सन्दर्भ मे केसे रखा जा सकता हे । हिंदी संस्कृति के विरुध उनकी बयानबाज़ी उनकी हलकी ,निम्न मानसिकता का परिचय देती हे .हर हाल मे किसी लेखक की रचना का सम्मान होना चाहिए .पढ़ा लिखा कुलपति भी जब अपनी जिव्हा को लगाम देकर नहीं रखेगा तोआम लोगों से क्या उम्मीद किजा सकती हे .दर असल देश की विभूतियों को भी महिला रचना करों के सम्मान का ख्याल रखना चाहिए .उनके वि वि के तमामविद्यार्थी .शिक्षक इस बात पर नाराजगी जताएं । ये लेखिका नहीं नारी अवमानना की बात हे नाम विभूति होने से व्यक्ति विभूति नहीं हो जाता हे । उसके कर्म उसे विभूति बनाते हे विभुतिजी । अपशब्द आप की पत्नी ने आपके लिए कभी बोले हे क्या ?आप से ऐसी कमसे कम ऐसी भाषा की कल