स्मृतियाँ
जैये नीले समंदर पर
उठती-गिरती उज्जवल लहरें
जैसे सुख के चमकीलें दिन
और दुख की स्याह रातें
कितना अजीब है प्रकृति का क्रम
एक रंग में से उभरता दूसरा रंग
जीवन भी रंग बदलता है, हर पल,हर कदम
पर तुम अकेले कहाँ, जीवनसाथी है तुम्हारे संग,
मज़ा है तब जब हो आपसी विश्वास
और प्यार की मिठास
किए जाओं कर्म,मन रखना साफ
ईश्वर भी तलाशता है सुन्दर घरौंदे
जहाँ दें वह आशीष की सौगात
दुरियाँ हो चाहे कितनी ही
महसूस होते हो आसपास
क्योंकि मन में बसी है प्यारी याद।
समय
बंद मुठ्ठी ये फिसल जाता है समय
और हम सोचते रहते हैं
कि वक्त हमारे साथ है
पर, जब खोलते हैं मुठ्ठी तो लगता है
कि समय हमारे पास बहुत कम है
लेकिन तभी पता चलता है कि
समय हमारी मुठ्ठी ये
रेत की तरह फिसल गया
और हम देखते ही रह गए।
हम सोच रहे थे
कि सफलता के शिखर पर पहुँच जाएंगे
परंतु, फिर समय की कमी के कारण
हम पीछे ही रह गए
और जमाना देखता ही रह गया।
हम सोच रहे थे, कि
सफलता कैसे प्राप्त की जाए?
फिर सोचा,
क्यों न समय को सहेजकर रखा जाए
परंतु, तभी याद आया,
क्या समय हमारे पास है
जब यह सोचा, तो याद आया
कि सचमुच समय हमारी मुठ्ठी से
रेत की तरह फिसल गया
और हम पीछे ही रह गए।
पर, जब आँख खुली तो मैंने पाया,
कि वह एक स्वप्न है,
समय मेरे साथ है
और मैं समय के साथ हूँ
और सफलता मुझे
समय की सीढ़ियों पर बुला रही है
अब मैंने पाया
कि समय मेरी मुठ्ठी में है।
-- रूचि बागड़देव --
जैये नीले समंदर पर
उठती-गिरती उज्जवल लहरें
जैसे सुख के चमकीलें दिन
और दुख की स्याह रातें
कितना अजीब है प्रकृति का क्रम
एक रंग में से उभरता दूसरा रंग
जीवन भी रंग बदलता है, हर पल,हर कदम
पर तुम अकेले कहाँ, जीवनसाथी है तुम्हारे संग,
मज़ा है तब जब हो आपसी विश्वास
और प्यार की मिठास
किए जाओं कर्म,मन रखना साफ
ईश्वर भी तलाशता है सुन्दर घरौंदे
जहाँ दें वह आशीष की सौगात
दुरियाँ हो चाहे कितनी ही
महसूस होते हो आसपास
क्योंकि मन में बसी है प्यारी याद।
समय
बंद मुठ्ठी ये फिसल जाता है समय
और हम सोचते रहते हैं
कि वक्त हमारे साथ है
पर, जब खोलते हैं मुठ्ठी तो लगता है
कि समय हमारे पास बहुत कम है
लेकिन तभी पता चलता है कि
समय हमारी मुठ्ठी ये
रेत की तरह फिसल गया
और हम देखते ही रह गए।
हम सोच रहे थे
कि सफलता के शिखर पर पहुँच जाएंगे
परंतु, फिर समय की कमी के कारण
हम पीछे ही रह गए
और जमाना देखता ही रह गया।
हम सोच रहे थे, कि
सफलता कैसे प्राप्त की जाए?
फिर सोचा,
क्यों न समय को सहेजकर रखा जाए
परंतु, तभी याद आया,
क्या समय हमारे पास है
जब यह सोचा, तो याद आया
कि सचमुच समय हमारी मुठ्ठी से
रेत की तरह फिसल गया
और हम पीछे ही रह गए।
पर, जब आँख खुली तो मैंने पाया,
कि वह एक स्वप्न है,
समय मेरे साथ है
और मैं समय के साथ हूँ
और सफलता मुझे
समय की सीढ़ियों पर बुला रही है
अब मैंने पाया
कि समय मेरी मुठ्ठी में है।
-- रूचि बागड़देव --
bahur sundar likha....
जवाब देंहटाएंरुचि जी की रचनायें पसंद आईं..आभार प्रस्तुत करने का.
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