ना ----मै --------नी -------बोलना ----
जब भी सोंचती हूँ
अब मेँ चूप रहूंगी ,
तब
मन की चंचलता हिलोले ल्रती है
आदतों का बचपना पुकारने लगता है
आशाओं का स्वप्न संवरने लगता है
भावनाओं का ज्वार उफनने लगता है
आखों का जल छलकने लगता है
और तब ,
ना चाहते हुए भी
एक कंपकंपातीआवाज
निकल जाती है
और मै फिर बोलने लगती हूँ
जब भी सोंचती हूँ
अब मेँ चूप रहूंगी ,
तब
मन की चंचलता हिलोले ल्रती है
आदतों का बचपना पुकारने लगता है
आशाओं का स्वप्न संवरने लगता है
भावनाओं का ज्वार उफनने लगता है
आखों का जल छलकने लगता है
और तब ,
ना चाहते हुए भी
एक कंपकंपातीआवाज
निकल जाती है
और मै फिर बोलने लगती हूँ
और फिर मैं बोलने लगती हूँ - बहुत खूब स्वाति जी। सुन्दर भाव।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ है, बार बार पढने को जी चाहता है!
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