संकल्प
हम भी बुन लेते हैं
संकल्पों के जाले,
ठीक उस मकड़ी की तरह
जो घर का सपना देखती
उलझ जाती है ,स्वयं के बुने जालों में
हमारे स्वप्नों के ये जाल
महीन तारों से बुने होते है ,चटक रंगों ,रेशमी तारों के वावजूद
,जकडन की चिपचिपाहट
फंस जाने की उकताहट से
मुक्त होनेकी छात्पताहत में ,
हम
एक जाले से निकलते हुए
दूसरा जला बुनने लगते है
जाल दर जाल
बुनने और निकलने की उलछन में
हम और उलझते जाते है
अपने ही बुने मकड जालों में अपने ही मकड जालों में
sahi kaha ye sapno ke jale sach me bhramit hi larte hain...
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंवाकई जिन्दगी मकड़जाल है
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
बहुत बेहतरीन!!
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