लाल फीता शाही सेमुक्ति
लाल फिताशाहों काम करो वरना भुगतो खामियाजा
स्वाति तिवारी
हमारे देश में सरकारी दफ्तरों में कर्मचारियों से लेकर अफसरों को जनता का माई बाप समझना इस देश की एक बहुत बड़ी त्रासदी है। लोगों का काम अटकाना,उसमें अडंगे लगाना और उन्हें छोटे-छोटे से काम तक के लिए चक्कर लगवाना इनकी फितरत बन गयी है। यह किसी खास राज्य, क्षेत्र अथवा विभाग की नहीं बल्कि पूरे देश की समस्या है । ऐसा करने में उनके निहित स्वार्थ तो जुड़े ही होते हैं, उनकी परपीड़क मानसिकता और खुद को जनता से ''बड़ा'' जताने की प्रवृति भी काम करती है । हालत इतने बद्तर हो गये है कि बुजुर्ग तो यह तक कहते सुने जाते हैं कि ''इससे तो अंग्रेजों का राज अच्छा था'' । आजाद भारत में इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है ।
बड़ी तकलीफ होती है जब घरेलू महरी आकर कहती है मेडमजी कूपन नहीं बन रहा- कल फिर जाऊंगी राशनकार्ड बनवाने । बच्चे का स्कूल रिक्शेवाला दो दिन नहीं आया- पूछने पर कहता है लड़के के एडमीशन के लिए जाति प्रमाण-पत्र दे ही नहीं रहे है - कहते है अगले हफ्ते आना - दो दिन की मजदूरी गई और बात वहीं की वहीं है । पर तुम तो पिछले हफ्ते भी गए थे ना - पूछने पर वह कहता है - हाँ - अभी अगले हफ्ते फिर बुलाया है ...ये .श्य किसी एक शहर, गाँव, कस्वे, जिले या संभाग या प्रदेश का नहीं, यह आम .श्य है तो किसी के भी घर की महरी या माली, रिक्शेवाले या हमारा आपका हो सकता है और होता है- यह एक राष्ट्रीय समस्या की तरह फैलती चली जाने वाली एक अ.श्य गाजर घास है जो चारों तरफ तेजी से फैलती चली गई है और लालफीताशाही की इस गाजर घास ने कोई दफ्तर या कार्यालय नहीं छोड़ा है - शिकायत कौन करे और किससे करें । कुछ संक्रमण इतनी तेजी से और इस तरह फैलते है कि रोकने और बचने की गुंजाइश ही नहीं देते । यह हमारे देश का दुर्भाग्यपूर्ण संक्रमण है । ईमानदारी से मेहनत की रोटी खाने वाले भारतीय समाज को इसने अपने शिकंजे में ले लिया है । कितना फर्क पड़ता है जब ,एक गरीब आदमी समय पर अपने बच्चे का एडमिशन नहीं करवा पाता, तारीख निकल जाती है- घर का चूल्हा नहीं जलता केरोसीन के खत्म हो जाने से सरकारी हो या गैर सरकारी, अधिकारी हो या कर्मचारी.....उसकी मानसिकता ही कुछ ऐसी हो गई है कि अपनी कुर्सी तोड़ो और तनखा लो ।
सरकारी अमले की इस बढ़ती दुष्प्रवृत्ति का एक कारण दोषी कर्मचारियों के लिए समुचित दंड की व्यवस्था न होना भी है । कोई जनता का काम करें या न करें, समय पर करें ,उसके काम को कितना भी लटकाये,उसे यह पता होता है कि उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
पूर्व में सिटीजन चार्टर व्यवस्था कई सालों से लागू थी । हर दफ्तर के बाहर एक बोर्ड लगा दिख जाता था कि कौन सा काम कितने दिन में किया जाएगा । लेकिन यह बोर्ड महज मजाक बनकर रह गया था, क्योंकि काम समय सीमा में न होने पर दंड का प्रावधान नहीं था । बिन भय प्रीत नहीं होती । लेकिन लोक सेवा गारंटी में दंड का प्रावधान है और प्रशासन में दंड का महत्व सुविदित है । हम पूरा विश्वास कर सकते हैं कि अब मध्यप्रदेश के लोग अपने कार्यो के लिए सरकारी अमले की ''मेहरवानी''पर निर्भर न रहेंगे । अब उन्हें यह कार्य कराने का पूरा अधिकार होगा । यह भी समय सीमा में ........वरना ...........दंड ।
मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने हमेशा कोशिश की है कि वह एक ओर जहाँ लोक कल्याणकारी कामों पर ध्यान दें, वहीं यह भी देखे कि लोक आचरण में शुचिता कैसे कायम रखी जाए । इसके तहत उन्होंने जन-प्रतिनिधियों और आईएएस अधिकारियों सहित प्रदेश के अधिकारियों, कर्मचारियों से संपत्ति की घोषणा करवाई । यह दर्शाता है कि इस सरकार की कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं है । साथ ही यह भी कि वे ऊपर से नीचे तक पारदर्शिता और समान जिम्मेदारी का भाव रखना चाहते हैं । इसी सोच के चलते पिछले हफ्ते ही सरकार ने विधानसभा में एक विधेयक न केवल प्रस्तुत किया बल्कि उसे पारित भी करवाया, जिसमें यह व्यवस्था है कि काम न करने वाले शासकीय व्यक्ति को अर्थदंड भुगतना पड़ेगा । इस दंड से प्राप्त रकम उस व्यक्ति को मिलेगी जिसका नुकसान इस मायने में हुआ कि संबंधित अधिकारी ने उसके आवेदन पर गौर नहीं किया जिसके कारण उसे बार-बार वहाँ आकर समय और पैसा खर्च करना पड़ा । मध्यप्रदेश देश का ऐसा करने वाला पहला राज्य बन गया है । यह क्रांतिकारी विधेयक भविष्य में देश को नई दिशा,नई सोच और शासकीय तंत्र में जिम्मेदारी की नई भावना पैदा कर सकता है ।
मध्यप्रदेश लोक सेवा गारण्टी विधयेक अभी कुछ विभागों में प्रयोगात्मक रूप से लागू किया जाएगा, जिसे परीक्षण -निरीक्षण के बाद व्यापक रूप से लागू कर दिया जायगा । नया कानून 15 दिन में लागू होगा । इसके लागू होने के साथ ही संबंधित महकमे के पास आवेदन आने के एक निश्चित समय के भीतर उसका जवाब देना होगा । यदि वैसा नहीं कर पाए तो 250 रूपए प्रतिदिन के हिसाब से अधिकतम 5000 रूपये तक जुर्माना संबंधित अधिकारी पर किया जाएगा । यह रकम उस व्यक्ति को दे दी जाएगी जिसके समय और जानकारी में विलम्ब का नुकसान हुआ है । बड़ी बात यह भी है कि आवेदन आने के साथ ही आवेदक को यह भी बताना पड़ेगा कि उसके आवेदन पर कितने समय में फैसला हो जाएगा । यदि आवेदन मंजूरी योग्य नहीं है तो वह भी तत्काल बता दिया जाएगा । इतना ही नहीं,शासकीय अधिकारी पर विलम्ब के लिए अर्थदंड के साथ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जाएगी । याने पूरे मामले को बेहद व्यवहारिक ढंग से बनाया गया है । इसे सिर्फ रस्मी नहीं रखा गया कि अधिकारी ने कर दिया तो ठीक और नहीं भी किया तो ठीक । अब उसे यह समझ लेना होगा कि वह टाल मटोल करता है तो उसे इसका खामियाजा भुगतना होगा ।
फिलहाल इसके दायरे में जन्म प्रमाण-पत्र, मूल निवासी प्रमाण-पत्र,खसरा-खतौनी की नकल,नल कनेक्शन जैसी लोक सेवाएं ली गई है । संभावना यह है कि इस प्रयोग के नतीजों की समीक्षा कर इसका दायरा बढ़ाया जाएगा ।
इस विधेयक को विधानसभा में प्रस्तुत करते वक्त मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जहां इसके ईमानदार क्रियान्वयन का भरोसा दिलाया वहीं यह भी संभावना जताई कि संभवतः पूरी दुनिया में इस तरह का कोई कानून नहीं है । याने मध्यप्रदेश शासन ने विश्व कीर्तिमान लायक काम किया है । इस कानूनी की सफलता के बाद ताज्जुब नहीं यदि देश भर में इसे लागू करने की होड़ मच जाए । आखिरकार मौजूदा दौर में लोक सेवकों के गैर जवाबदारीपूर्ण आचरण के मद्देनजर इस बात की जरूरत महसूस की जा रही है कि उन पर इस तरह का कोई अंकुश तो हो ही जो उन्हें जवाबदार बनाए और लोगों में इस बात का भरोसा भी पैदा करें कि उनकी लगातार उपेक्षा नहीं की जा सकती ।
उम्मीद यह भी रही है कि इस कानून के प्रभावी हो जाने के बाद सरकारी तंत्र में लालफीताशाही पर नियंत्रण लगेगा और व्यवस्था कायम रखने के प्रति भावना भी बढ़ेगी । जैसे कि मुख्यमंत्री ने घोषणा भी की है कि 15 दिन के भीतर इस पर अमल शुरू हो जाएगा तो हम यह अपेक्षा कर ही सकते है कि यह महज एक सरकारी घोषणा बनकर नहीं रह जाएगी । साथ ही शासकीय मशीनरी में यह संदेश भी जाएगा कि उस पर अब किसी की पैनी नजर भी है । इसमें मुख्यमंत्री ने इस बात का यकीन भी दिलाया है कि जल्द ही इसके दायरे में मुख्यमंत्री और मंत्रियों को भी लाया जाएगा । हम यह कह सकते है कि मध्यप्रदेश इस वक्त एक के बाद एक नवोन्मेषी कार्यक्रमों को अंजाम देने लगा है । इन कोशिशों का निश्चित ही सुखद परिणाम मिलने की आशा की जा सकती है ।
स्वाति तिवारी
हमारे देश में सरकारी दफ्तरों में कर्मचारियों से लेकर अफसरों को जनता का माई बाप समझना इस देश की एक बहुत बड़ी त्रासदी है। लोगों का काम अटकाना,उसमें अडंगे लगाना और उन्हें छोटे-छोटे से काम तक के लिए चक्कर लगवाना इनकी फितरत बन गयी है। यह किसी खास राज्य, क्षेत्र अथवा विभाग की नहीं बल्कि पूरे देश की समस्या है । ऐसा करने में उनके निहित स्वार्थ तो जुड़े ही होते हैं, उनकी परपीड़क मानसिकता और खुद को जनता से ''बड़ा'' जताने की प्रवृति भी काम करती है । हालत इतने बद्तर हो गये है कि बुजुर्ग तो यह तक कहते सुने जाते हैं कि ''इससे तो अंग्रेजों का राज अच्छा था'' । आजाद भारत में इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है ।
बड़ी तकलीफ होती है जब घरेलू महरी आकर कहती है मेडमजी कूपन नहीं बन रहा- कल फिर जाऊंगी राशनकार्ड बनवाने । बच्चे का स्कूल रिक्शेवाला दो दिन नहीं आया- पूछने पर कहता है लड़के के एडमीशन के लिए जाति प्रमाण-पत्र दे ही नहीं रहे है - कहते है अगले हफ्ते आना - दो दिन की मजदूरी गई और बात वहीं की वहीं है । पर तुम तो पिछले हफ्ते भी गए थे ना - पूछने पर वह कहता है - हाँ - अभी अगले हफ्ते फिर बुलाया है ...ये .श्य किसी एक शहर, गाँव, कस्वे, जिले या संभाग या प्रदेश का नहीं, यह आम .श्य है तो किसी के भी घर की महरी या माली, रिक्शेवाले या हमारा आपका हो सकता है और होता है- यह एक राष्ट्रीय समस्या की तरह फैलती चली जाने वाली एक अ.श्य गाजर घास है जो चारों तरफ तेजी से फैलती चली गई है और लालफीताशाही की इस गाजर घास ने कोई दफ्तर या कार्यालय नहीं छोड़ा है - शिकायत कौन करे और किससे करें । कुछ संक्रमण इतनी तेजी से और इस तरह फैलते है कि रोकने और बचने की गुंजाइश ही नहीं देते । यह हमारे देश का दुर्भाग्यपूर्ण संक्रमण है । ईमानदारी से मेहनत की रोटी खाने वाले भारतीय समाज को इसने अपने शिकंजे में ले लिया है । कितना फर्क पड़ता है जब ,एक गरीब आदमी समय पर अपने बच्चे का एडमिशन नहीं करवा पाता, तारीख निकल जाती है- घर का चूल्हा नहीं जलता केरोसीन के खत्म हो जाने से सरकारी हो या गैर सरकारी, अधिकारी हो या कर्मचारी.....उसकी मानसिकता ही कुछ ऐसी हो गई है कि अपनी कुर्सी तोड़ो और तनखा लो ।
सरकारी अमले की इस बढ़ती दुष्प्रवृत्ति का एक कारण दोषी कर्मचारियों के लिए समुचित दंड की व्यवस्था न होना भी है । कोई जनता का काम करें या न करें, समय पर करें ,उसके काम को कितना भी लटकाये,उसे यह पता होता है कि उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
पूर्व में सिटीजन चार्टर व्यवस्था कई सालों से लागू थी । हर दफ्तर के बाहर एक बोर्ड लगा दिख जाता था कि कौन सा काम कितने दिन में किया जाएगा । लेकिन यह बोर्ड महज मजाक बनकर रह गया था, क्योंकि काम समय सीमा में न होने पर दंड का प्रावधान नहीं था । बिन भय प्रीत नहीं होती । लेकिन लोक सेवा गारंटी में दंड का प्रावधान है और प्रशासन में दंड का महत्व सुविदित है । हम पूरा विश्वास कर सकते हैं कि अब मध्यप्रदेश के लोग अपने कार्यो के लिए सरकारी अमले की ''मेहरवानी''पर निर्भर न रहेंगे । अब उन्हें यह कार्य कराने का पूरा अधिकार होगा । यह भी समय सीमा में ........वरना ...........दंड ।
मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने हमेशा कोशिश की है कि वह एक ओर जहाँ लोक कल्याणकारी कामों पर ध्यान दें, वहीं यह भी देखे कि लोक आचरण में शुचिता कैसे कायम रखी जाए । इसके तहत उन्होंने जन-प्रतिनिधियों और आईएएस अधिकारियों सहित प्रदेश के अधिकारियों, कर्मचारियों से संपत्ति की घोषणा करवाई । यह दर्शाता है कि इस सरकार की कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं है । साथ ही यह भी कि वे ऊपर से नीचे तक पारदर्शिता और समान जिम्मेदारी का भाव रखना चाहते हैं । इसी सोच के चलते पिछले हफ्ते ही सरकार ने विधानसभा में एक विधेयक न केवल प्रस्तुत किया बल्कि उसे पारित भी करवाया, जिसमें यह व्यवस्था है कि काम न करने वाले शासकीय व्यक्ति को अर्थदंड भुगतना पड़ेगा । इस दंड से प्राप्त रकम उस व्यक्ति को मिलेगी जिसका नुकसान इस मायने में हुआ कि संबंधित अधिकारी ने उसके आवेदन पर गौर नहीं किया जिसके कारण उसे बार-बार वहाँ आकर समय और पैसा खर्च करना पड़ा । मध्यप्रदेश देश का ऐसा करने वाला पहला राज्य बन गया है । यह क्रांतिकारी विधेयक भविष्य में देश को नई दिशा,नई सोच और शासकीय तंत्र में जिम्मेदारी की नई भावना पैदा कर सकता है ।
मध्यप्रदेश लोक सेवा गारण्टी विधयेक अभी कुछ विभागों में प्रयोगात्मक रूप से लागू किया जाएगा, जिसे परीक्षण -निरीक्षण के बाद व्यापक रूप से लागू कर दिया जायगा । नया कानून 15 दिन में लागू होगा । इसके लागू होने के साथ ही संबंधित महकमे के पास आवेदन आने के एक निश्चित समय के भीतर उसका जवाब देना होगा । यदि वैसा नहीं कर पाए तो 250 रूपए प्रतिदिन के हिसाब से अधिकतम 5000 रूपये तक जुर्माना संबंधित अधिकारी पर किया जाएगा । यह रकम उस व्यक्ति को दे दी जाएगी जिसके समय और जानकारी में विलम्ब का नुकसान हुआ है । बड़ी बात यह भी है कि आवेदन आने के साथ ही आवेदक को यह भी बताना पड़ेगा कि उसके आवेदन पर कितने समय में फैसला हो जाएगा । यदि आवेदन मंजूरी योग्य नहीं है तो वह भी तत्काल बता दिया जाएगा । इतना ही नहीं,शासकीय अधिकारी पर विलम्ब के लिए अर्थदंड के साथ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जाएगी । याने पूरे मामले को बेहद व्यवहारिक ढंग से बनाया गया है । इसे सिर्फ रस्मी नहीं रखा गया कि अधिकारी ने कर दिया तो ठीक और नहीं भी किया तो ठीक । अब उसे यह समझ लेना होगा कि वह टाल मटोल करता है तो उसे इसका खामियाजा भुगतना होगा ।
फिलहाल इसके दायरे में जन्म प्रमाण-पत्र, मूल निवासी प्रमाण-पत्र,खसरा-खतौनी की नकल,नल कनेक्शन जैसी लोक सेवाएं ली गई है । संभावना यह है कि इस प्रयोग के नतीजों की समीक्षा कर इसका दायरा बढ़ाया जाएगा ।
इस विधेयक को विधानसभा में प्रस्तुत करते वक्त मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जहां इसके ईमानदार क्रियान्वयन का भरोसा दिलाया वहीं यह भी संभावना जताई कि संभवतः पूरी दुनिया में इस तरह का कोई कानून नहीं है । याने मध्यप्रदेश शासन ने विश्व कीर्तिमान लायक काम किया है । इस कानूनी की सफलता के बाद ताज्जुब नहीं यदि देश भर में इसे लागू करने की होड़ मच जाए । आखिरकार मौजूदा दौर में लोक सेवकों के गैर जवाबदारीपूर्ण आचरण के मद्देनजर इस बात की जरूरत महसूस की जा रही है कि उन पर इस तरह का कोई अंकुश तो हो ही जो उन्हें जवाबदार बनाए और लोगों में इस बात का भरोसा भी पैदा करें कि उनकी लगातार उपेक्षा नहीं की जा सकती ।
उम्मीद यह भी रही है कि इस कानून के प्रभावी हो जाने के बाद सरकारी तंत्र में लालफीताशाही पर नियंत्रण लगेगा और व्यवस्था कायम रखने के प्रति भावना भी बढ़ेगी । जैसे कि मुख्यमंत्री ने घोषणा भी की है कि 15 दिन के भीतर इस पर अमल शुरू हो जाएगा तो हम यह अपेक्षा कर ही सकते है कि यह महज एक सरकारी घोषणा बनकर नहीं रह जाएगी । साथ ही शासकीय मशीनरी में यह संदेश भी जाएगा कि उस पर अब किसी की पैनी नजर भी है । इसमें मुख्यमंत्री ने इस बात का यकीन भी दिलाया है कि जल्द ही इसके दायरे में मुख्यमंत्री और मंत्रियों को भी लाया जाएगा । हम यह कह सकते है कि मध्यप्रदेश इस वक्त एक के बाद एक नवोन्मेषी कार्यक्रमों को अंजाम देने लगा है । इन कोशिशों का निश्चित ही सुखद परिणाम मिलने की आशा की जा सकती है ।
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