नीले नीले अम्बर पर
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आज इनके बारे सोच कर देखें .क्या हम इनके साथ न्याय करते है .धरती पर सभी जीवों का अधिकार हे .पर आदमी अपनी हद बदता ही जा रहा हे .जो काम थोड़ी सी जगह में हो सकता .उसके लिए गगन चुम्भी इमारतें बन रही है .सीमेंट कंक्रीट के जंगल मत बनाइये जीवन को जमीं की जरूरत हे .धरती की पानी सोखने की शमताबनी रहने दें ये सुन्दर प्राणी मिटटी में खेलना चाहते हे .कुछ देर खेलने दीजिये
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अचार (कहानी ) स्वाति तिवारी मई की तेज धूप को देखकर याद आया कि चने की दल को धूप दिखाना है । ऑगन की धूप में पुरानी चादर बिछाकर स्टोर रूप में चले की दाल की कोठी निकालने गयी तो अचार का मर्तबान (बरनी) दिखाई दे गयी । दाल को धूप में फैलाकर पलटी तो अचार का ख्याल आया, लगे हाथ अचार को भी देख लूं । बर्नी पर कुछ नमक छिटक आया था उजाले में लाकर देखा तो यह दो साल पुराना अचार था । अम्मा कहती है - ‘पुराना अचार अचार नहीं औषधि हो जाता है - जब जी मचलाए, भूख ना लगे, स्वाद उतर जाए तो थोड़ा सा पुराना अचार चाट लो और चीर को चुस लो, सारा अजीर्ण खत्म ।‘ बात-बात में आजकल मुझे अम्मा के फंडे याद आ जाते हैं । शायद आजकल मैं बिलकुल अम्मा जैसी होती जा रही हूँ । उम्र का एक दौर ऐसा भी आता है जब हम ‘हम‘ नहीं रहते अपने माता या पिता की तरह लगने लगते हैं, वैसा ही सोचने लगते हैं । छोटी थी तो मैं हमेशा कहती थी ‘अम्मा मैं तुम्हारी तरह नहीं बनूँगी । सारा दिन बेवजह के कामों में खटती रहती हो ।‘ पर चने की दाल पर हाथ फेरते हुए मुझे अपने ही ख्याल पर हंसी आ गयी । अचार को भी परात में फैलाकर धूप में रख आयी । सोचा, इस बार अचार नहीं डालूंग...
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क्या आप अपने बच्चों को रेस के घोड़ों की तरह सिर्फ भागने की प्रेक्टिस तो नहीं करवा रहे हैं ? जीवन की सुन्दरता जीवनको सहजता से जीने में हे यह भी समझाना जरुरी हे .एक ही जीवन में आप अगर भागते ही रहे तो जीवन के अनमोलपल कब हाथ से निकल गए ये पता ही नहीं चलेगा .क्या हम इस बारे अपने बच्चे से कभी बात करते हैं?